Wednesday, May 19, 2010

वेदना

मैं तुम्हारा प्यार लेकर जी रहा हूँ

शुष्क आँखों में तेरा चेहरा छुपाये
डगमगाती राह में सर को झुकाए
चाहतें दीदार की दिल में लिए
लड़ रहा हर सांस से मै लडखडाये

बस तेरा वादा फखत मैं जी रहा हूँ
मैं तुम्हारा प्यार लेकर जी रहा हूँ

क्या करूँगा मैं ये झूठा मान लेकर
क्या करूँगा मैं ये निष्ठुर प्राण लेकर
बह रही है वेदना उर में मुसलसल
क्या करूँगा मैं ये अमृत दान लेकर

तेरी यादों का हलाहल पी रहा हूँ
मैं तुम्हारा प्यार लेकर जी रहा हूँ

                                                      
                                                     "चन्द्र मौलि"

1 comments:

Unknown said...

just wowwwwwwwwwwwwwwwwwwwww

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