शुष्क आँखों में तेरा चेहरा छुपाये
डगमगाती राह में सर को झुकाए
चाहतें दीदार की दिल में लिए
लड़ रहा हर सांस से मै लडखडाये
बस तेरा वादा फखत मैं जी रहा हूँ
मैं तुम्हारा प्यार लेकर जी रहा हूँ
क्या करूँगा मैं ये झूठा मान लेकर
क्या करूँगा मैं ये निष्ठुर प्राण लेकर
बह रही है वेदना उर में मुसलसल
क्या करूँगा मैं ये अमृत दान लेकर
तेरी यादों का हलाहल पी रहा हूँ
मैं तुम्हारा प्यार लेकर जी रहा हूँ
"चन्द्र मौलि"
1 comments:
just wowwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
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